
इस गणेशोत्सव फीकी रहेगी त्योहार की मिठास? ‘लाडली बहन’ योजना बनी ‘आनंद शिधा'(Anandacha Shidha) के रास्ते का रोड़ा!
त्योहारों का मौसम आते ही घरों में एक अलग ही रौनक होती है, खासकर महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की धूम तो कुछ और ही होती है। पकवानों की खुशबू और अपनों का साथ इस त्योहार को खास बनाता है। लेकिन इस बार, इस उत्सव की मिठास थोड़ी फीकी पड़ सकती है, क्योंकि राज्य सरकार की लोकप्रिय ‘आनंद शिधा'(Anandacha Shidha) योजना इस गणेश चतुर्थी पर लोगों तक नहीं पहुँच पाएगी।
इसका कारण? एक और बड़ी योजना का वित्तीय बोझ। यह खुलासा खुद राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल ने किया है, और उनकी बातों से साफ है कि सरकार के एक हाथ से देने की कीमत दूसरे हाथ से वसूली जा रही है।
क्यों लगा ‘आनंद शिधा'(Anandacha Shidha) पर ब्रेक?
मंत्री छगन भुजबल ने साफ तौर पर स्वीकार किया है कि सरकार की महत्वाकांक्षी ‘लाडली बहन योजना’ के लिए 45,000 करोड़ रुपये का एक बहुत बड़ा फंड अलग रखना पड़ रहा है। इस विशाल राशि का सीधा असर दूसरी कल्याणकारी योजनाओं के बजट पर पड़ रहा है, और‘आनंद शिधा'(Anandacha Shidha) इसका पहला बड़ा शिकार बनी है।
भुजबल ने यह भी माना कि इस वजह से दूसरी योजनाओं पर थोड़ा-बहुत असर हो रहा है। उन्होंने भरोसा दिलाया, “जैसे-जैसे फंड उपलब्ध होगा, हम योजनाओं को आगे बढ़ाते रहेंगे,” लेकिन फिलहाल त्योहार सिर पर है और लोगों के हाथ खाली रहने वाले हैं।
क्या था ‘आनंद शिधा'(Anandacha Shidha) में खास, जो अब नहीं मिलेगा?
त्योहारों के मौके पर गरीब और जरूरतमंद परिवारों के लिए यह योजना एक बड़ी राहत थी। सिर्फ 100 रुपये के मामूली खर्च पर राशन कार्ड धारकों को एक किट दिया जाता था, जिसमें शामिल होता था:
- एक किलो चीनी
- एक किलो रवा (सूजी)
- एक किलो चना दाल
- एक लीटर पाम तेल
यह किट त्योहारों में बनने वाले पकवानों की रौनक बढ़ा देता था, लेकिन इस बार यह खुशी लोगों तक नहीं पहुँचेगी।
सिर्फ पैसे की नहीं, समय की भी है कमी
मंत्री भुजबल ने बताया कि सिर्फ पैसे की कमी ही नहीं, बल्कि प्रक्रियात्मक देरी भी एक बड़ी वजह है। ‘आनंद शिधा'(Anandacha Shidha) बांटने के लिए दो से तीन महीने पहले टेंडर प्रक्रिया शुरू करनी पड़ती है। अब गणेशोत्सव के लिए इतना समय नहीं बचा है, इसलिए इसे लागू करना तकनीकी रूप से भी संभव नहीं है।
सिर्फ ‘आनंद शिधा'(Anandacha Shidha) ही नहीं, ‘शिवभोजन थाली’ पर भी संकट के बादल
चिंता की बात यह है कि इस वित्तीय संकट का असर सिर्फ एक योजना तक सीमित नहीं है। गरीबों और मजदूरों को सिर्फ 10 रुपये में भरपेट भोजन कराने वाली ‘शिवभोजन थाली’ योजना भी खतरे में है।
सूत्रों के मुताबिक, इस योजना को सुचारु रूप से चलाने के लिए सालाना 140 करोड़ रुपये की जरूरत है, लेकिन सरकार ने खाद्य आपूर्ति विभाग को अब तक सिर्फ 20 करोड़ रुपये ही दिए हैं। अगर जल्द ही फंड जारी नहीं हुआ, तो यह योजना भी बंद होने की कगार पर पहुँच सकती है।
आगे क्या?
एक तरफ सरकार ‘लाडली बहन’ जैसी योजना से महिलाओं को सशक्त करना चाहती है, तो दूसरी तरफ ‘आनंद का ‘आनंद शिधा'(Anandacha Shidha) और ‘शिवभोजन थाली’ जैसी योजनाओं पर वित्तीय संकट मंडरा रहा है, जो सीधे तौर पर गरीबों के पेट से जुड़ी हैं। अब देखना यह होगा कि सरकार इन योजनाओं के लिए फंड का इंतजाम कैसे करती है, ताकि त्योहारों की खुशी और गरीबों की थाली, दोनों पर असर न पड़े।