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गणेशजी की आरती: इसका अर्थ जानकर हर बाधा करें दूर | Jai Ganesh Deva Lyrics & Meaning

हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य का आरंभ भगवान गणेश की वंदना से होता है। वे प्रथम पूज्य हैं, बुद्धि के देवता हैं और सबसे बढ़कर, वे ‘विघ्नहर्ता’ हैं – सभी बाधाओं को दूर करने वाले। उनकी पूजा-अर्चना में जिस एक स्तुति का स्थान सबसे प्रमुख है, वह है उनकी आरती। “जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा” के स्वर जब गूंजते हैं, तो वातावरण भक्ति और ऊर्जा से भर जाता है। यह आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा, प्रेम और समर्पण को व्यक्त करने का एक माध्यम है।

आइए, इस दिव्य आरती के महत्व, इसके अर्थ और इसके पीछे छिपे भावों को गहराई से समझते हैं।

गणेशजी की आरती (संपूर्ण पाठ)

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥ ॥ जय गणेश, जय गणेश…॥

एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥ ॥ जय गणेश, जय गणेश…॥

पान चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥ ॥ जय गणेश, जय गणेश…॥

अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥ ॥ जय गणेश, जय गणेश…॥

‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥ ॥ जय गणेश, जय गणेश…॥

दीनन की लाज रखो, शम्भू सुत वारी। मनोकामना को पूरा करो, जाऊं बलिहारी॥ ॥ जय गणेश, जय गणेश…॥

आरती का सरल भावार्थ

यह आरती केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि भगवान गणेश के स्वरूप, गुण और कृपा का सुंदर वर्णन है।

  • “जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥”
    • अर्थ: हे गणेश देव, आपकी जय हो! आपकी जय हो! जिनकी माता देवी पार्वती और पिता भगवान महादेव (शिव) हैं। यह पंक्ति उनके दिव्य वंश का परिचय देती है।
  • “एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी॥”
    • अर्थ: आप एकदंत हैं (एक दांत वाले), अत्यंत दयालु हैं और चार भुजाओं को धारण करते हैं। आपके मस्तक पर सिंदूर सुशोभित है और आप मूषक (चूहे) की सवारी करते हैं। यह उनके स्वरूप का सुंदर चित्रण है। एकदंत होना त्याग का, चार भुजाएं उनकी सर्वव्यापक शक्ति का, सिंदूर सौभाग्य का और मूषक की सवारी विनम्रता और नियंत्रण का प्रतीक है।
  • “पान चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥”
    • अर्थ: भक्त आपको श्रद्धा से पान, फूल और मेवे अर्पित करते हैं। आपको लड्डुओं का भोग विशेष रूप से प्रिय है और संत-महात्मा भी आपकी सेवा करते हैं। यह पंक्ति पूजा में अर्पित की जाने वाली वस्तुओं और गणेशजी की प्रिय वस्तुओं का उल्लेख करती है।
  • “अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥”
    • अर्थ: हे प्रभु, आप इतने कृपालु हैं कि अंधों को दृष्टि प्रदान करते हैं और कुष्ठ रोगियों को निरोगी काया देते हैं। आप निःसंतान को संतान का सुख और निर्धनों को धन-संपदा (माया) प्रदान करते हैं। यह उनकी ‘विघ्नहर्ता’ और ‘सर्व-मनोकामना-पूरक’ छवि को दर्शाता है।
  • “‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।”
    • अर्थ: इस पंक्ति में आरती के रचयिता संत सूरदास जी स्वयं को संबोधित करते हुए कहते हैं कि ‘सूर’ (सूरदास) आपकी शरण में आया है, उसकी इस सेवा (आरती) को सफल कीजिए। यह भक्ति साहित्य की एक परंपरा है, जहाँ कवि अंत में अपना नाम अंकित करता है।
  • “दीनन की लाज रखो, शम्भू सुत वारी। मनोकामना को पूरा करो, जाऊं बलिहारी॥”
    • अर्थ: हे शंभु (शिव) के पुत्र! हम जैसे दीन-दुखियों की लाज रखना। हमारी सभी मनोकामनाओं को पूरा करो, हम आप पर बलिहारी जाते हैं (अपना सर्वस्व न्योछावर करते हैं)।

आरती का महत्व

गणेश आरती का गायन केवल एक परंपरा नहीं है, इसके गहरे आध्यात्मिक लाभ हैं:

  1. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: आरती के दौरान बजने वाली घंटी, शंख और गायन से उत्पन्न ध्वनि तरंगें वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं और नकारात्मकता को दूर करती हैं।
  2. समर्पण का भाव: जब भक्त हाथ जोड़कर भगवान के सामने आरती गाता है, तो उसके मन में अहंकार समाप्त होता है और समर्पण का भाव जागृत होता है।
  3. पंच-तत्वों का प्रतीक: आरती की थाली में दीपक (अग्नि तत्व), जल (जल तत्व), पुष्प (पृथ्वी तत्व), धूप का धुआं (वायु तत्व) और ध्वनि (आकाश तत्व) का समावेश होता है। इस प्रकार आरती के माध्यम से हम पंच-तत्वों को ईश्वर को समर्पित करते हैं।
  4. बाधाओं का नाश: सच्चे मन से गणेश आरती करने पर व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी बाधाएं और संकट दूर होते हैं और कार्यों में सफलता मिलती है।

“गणेशजी की आरती” भक्ति और विश्वास का एक जीवंत प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा से की गई एक सरल प्रार्थना भी भगवान तक पहुंचती है। यह हमें गणेशजी के दयालु, कृपालु और विघ्नहर्ता स्वरूप की याद दिलाती है, जो हमें जीवन की हर चुनौती का सामना करने की शक्ति और साहस प्रदान करते हैं। अगली बार जब आप इस आरती को गाएं, तो इसके शब्दों के पीछे छिपे गहरे अर्थ को महसूस करें और पूर्ण भक्ति के साथ विघ्नहर्ता का आह्वान करें।

।। गणपति बप्पा मोरया ।।

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