
संसद के पटल से जब देश के गृह मंत्री अमित शाह ने ऐलान किया कि पहलगाम आतंकी हमले का बदला ले लिया गया है, तो पूरे देश का ध्यान उनकी ओर खिंच गया। यह सिर्फ एक घोषणा नहीं थी, बल्कि एक सफल और सुनियोजित मिशन की कहानी थी, जिसे ‘ऑपरेशन महादेव’ नाम दिया गया। इस ऑपरेशन ने न केवल आतंकियों को खत्म किया, बल्कि यह भी दिखाया कि भारत की सुरक्षा एजेंसियां आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने के लिए कितनी गहराई से काम करती हैं। आइए जानते हैं इस साहसी ऑपरेशन की पूरी कहानी, जिसे गृह मंत्री ने खुद संसद में बयां किया।
क्या था ‘ऑपरेशन महादेव’?
‘ऑपरेशन महादेव’ एक संयुक्त मिशन था, जिसे पहलगाम में हुए कायराना आतंकी हमले के जिम्मेदार लोगों को सबक सिखाने के लिए चलाया गया। इसमें भारतीय सेना, CRPF और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने मिलकर काम किया। इस ऑपरेशन का एकमात्र लक्ष्य उन तीन आतंकवादियों का खात्मा करना था, जिन्होंने इस हमले को अंजाम दिया था।
गृह मंत्री अमित शाह ने बताया, “बैसरण इलाके में छिपे तीनों आतंकियों—सुलेमान, जिबरान और अबू हमजा—को इस संयुक्त ऑपरेशन में मार गिराया गया है। इनमें से लश्कर का आतंकी सुलेमान सीधे तौर पर पहलगाम हमले में शामिल था, जिसके हमारे पास पुख्ता सबूत हैं।”
जांच की गहराई: 3000 घंटे की पूछताछ और 1055 लोगों से सवाल-जवाब
इस ऑपरेशन की सफलता सिर्फ बंदूकों से नहीं, बल्कि खुफिया जानकारी और महीनों की कड़ी मेहनत से मिली। 22 अप्रैल को हुए हमले के तुरंत बाद, 23 अप्रैल को एक उच्च-स्तरीय सुरक्षा बैठक बुलाई गई और जांच का जिम्मा NIA को सौंप दिया गया।
- बड़ा जांच अभियान: सुरक्षाबलों ने पर्यटकों के परिवारों, स्थानीय गाइड, कैमरामैन और खच्चर वालों समेत 1055 लोगों से करीब 3000 घंटे तक पूछताछ की।
- आतंकियों के स्केच: इस गहन पूछताछ से मिली जानकारी के आधार पर आतंकवादियों के स्केच तैयार किए गए, जिससे उनकी पहचान में मदद मिली।
- मददगारों पर शिकंजा: जांच के दौरान 22 जून को बशीर और परवेज नाम के दो स्थानीय मददगारों की पहचान हुई। इन्होंने हमले के बाद आतंकियों को अपने घर में पनाह दी थी। उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया और वे अभी भी हिरासत में हैं।
इन्हीं मददगारों से पूछताछ में पता चला कि तीनों आतंकी 21 अप्रैल की रात AK-47 और M9 जैसे घातक हथियारों के साथ बैसरण के पास आए थे।
टेक्नोलॉजी और रणनीति का संगम: कैसे घेरे गए आतंकी?
मददगारों के पकड़े जाने के बाद असली ऑपरेशन शुरू हुआ। 22 मई से 22 जुलाई तक, लगभग दो महीने तक सुरक्षा एजेंसियां लगातार आतंकियों के सिग्नल ट्रैक कर रही थीं।
गृह मंत्री अमित शाह ने बताया, “22 जुलाई को हमें सेंसर के जरिए उनकी लोकेशन की सटीक पुष्टि मिली। इसके बाद हमने उन्हें चारों तरफ से घेरने का प्लान बनाया और अंततः कल (मंगलवार) तीनों को मौत के घाट उतार दिया गया।”
वैज्ञानिक सबूतों ने की पुष्टि: जब 4 बजे सुबह 6 वैज्ञानिकों ने मिलाए तार
ऑपरेशन के बाद यह साबित करना जरूरी था कि मारे गए आतंकी वही थे, जो हमले में शामिल थे। इसके लिए फॉरेंसिक साइंस का सहारा लिया गया।
- बैलिस्टिक रिपोर्ट: घटनास्थल से मिले कारतूसों के खोखे और आतंकियों से बरामद हथियारों (AK-47 और M9) का मिलान किया गया।
- चंडीगढ़ लैब में जांच: सबूतों के सैंपल जांच के लिए चंडीगढ़ भेजे गए, जहां पूरी रात उनकी जांच हुई।
- वीडियो कॉल पर पुष्टि: गृह मंत्री ने बताया, “सुबह 4 बजे 6 वैज्ञानिकों से वीडियो कॉल पर बात हुई और उन्होंने पुष्टि की कि घटनास्थल से मिले कारतूस और आतंकियों के हथियार से चली गोलियां एक ही हैं।”
अंत में, जब आतंकियों के शव श्रीनगर लाए गए, तो पहले से गिरफ्तार मददगारों ने भी उनकी पहचान कर ली, जिससे इस केस की हर कड़ी जुड़ गई। यह ऑपरेशन आतंकवाद के खिलाफ भारत की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति और सुरक्षाबलों की बेजोड़ क्षमता का एक और बड़ा उदाहरण है।