कोल्हापुर के आँसू और वनतारा का सच: क्या है माधुरी हथिनी के विवाद की असली वजह?

कोल्हापुर शहर आज एक अलग ही लड़ाई के लिए सड़कों पर उतर आया है। यह लड़ाई किसी राजनीतिक पार्टी या नेता के लिए नहीं, बल्कि अपनी प्यारी ‘माधुरी’ के लिए है। जी हाँ, नांदणी के जैन मठ से गुजरात के ‘वनतारा’ पशु बचाव केंद्र ले जाई गई महादेवी, यानी माधुरी हथिनी के लिए, पूरा कोल्हापुर एक साथ आ गया है। इस भावनात्मक सैलाब में रिलायंस के उत्पादों के बहिष्कार के नारे लग रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर सिर्फ 48 घंटों में सवा दो लाख से ज़्यादा लोगों ने राष्ट्रपति से उसे वापस लाने की गुहार लगाते हुए एक हस्ताक्षर अभियान चलाया है।
एक तरफ कोल्हापुरवासियों की भावनाओं का उबाल है, तो दूसरी तरफ ‘वनतारा’ ने अपना पक्ष रखा है। उनका कहना है, “माधुरी के स्वास्थ्य और दीर्घकालिक कल्याण की रक्षा करना ही हमारा एकमात्र उद्देश्य रहा है।”
लेकिन इन दो अलग-अलग दावों के बीच असली सच क्या है? क्या माधुरी की कहानी सिर्फ प्यार की है, या इसमें दर्द का एक अनदेखा पहलू भी छिपा है?
कोल्हापुर का प्यार: एक भावनात्मक रिश्ता

कोल्हापुर के लोगों के लिए माधुरी सिर्फ एक हथिनी नहीं, बल्कि उनकी आस्था और पहचान का हिस्सा है। जब उसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वनतारा ले जाया जा रहा था, तब विदाई का वह पल कई लोगों की आँखों में आँसू ले आया था। कहा जाता है कि खुद माधुरी की आँखें भी नम थीं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में लोगों का गुस्सा साफ दिखाई देता है। अनंत अंबानी की तस्वीर को चप्पलों का हार पहनाने से लेकर ‘हमारी महादेवी वापस आएगी‘ जैसे विश्वास भरे पोस्टर लगाने तक, लोगों की भावनाएँ उफान पर हैं। जियो सिम पोर्ट कराने और जियो मॉल का बहिष्कार करने की घटनाएँ इस संघर्ष की गंभीरता को दर्शाती हैं।
यह सब देखकर एक ही सवाल उठता है: अगर लोगों का इतना प्यार था, तो उसे दूर क्यों ले जाना पड़ा?
सिक्के का दूसरा पहलू: 33 साल की कैद?
PETA इंडिया और पशु अधिकार कार्यकर्ता सामने रख रहे हैं। उनके अनुसार, माधुरी की ज़िंदगी उससे बहुत अलग थी, जैसी कोल्हापुर के लोगों को दिखती थी।
- अकेलापन और दर्द: पिछले 33 सालों से माधुरी एक ही कंक्रीट की ज़मीन पर ज़ंजीरों में जकड़ी हुई थी। इस वजह से उसे ग्रेड-4 गठिया (Arthritis) और पैर में गंभीर संक्रमण (Foot Rot) हो गया था। उसे कभी भी दूसरे हाथियों के साथ आज़ादी से रहने का मौका नहीं मिला।
- क्रूरता का इस्तेमाल: उसे नियंत्रित करने के लिए ‘अंकुश’ जैसे नुकीले हथियार का इस्तेमाल किया जाता था और जुलूसों में उसकी कमर पर कसकर रस्सियाँ बाँधकर उसे घुमाया जाता था।
- जानलेवा हमला: 2017 में, सालों के अकेलेपन और निराशा भरी ज़िंदगी से तंग आकर, उसने मठ के मुख्य पुजारी पर जानलेवा हमला कर दिया था। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसी अमानवीय परिस्थितियों में रखे गए हाथी अक्सर मानसिक आघात के कारण हिंसक हो जाते हैं।
- पैसों के लिए इस्तेमाल: स्वामीजी की मृत्यु के बाद भी, उसे अवैध रूप से राज्य की सीमाएँ पार कराकर जुलूसों में किराए पर दिया जाता था। 2023 में तेलंगाना वन विभाग ने उसे ऐसे ही एक अवैध परिवहन के दौरान जब्त कर लिया और तब से वह मठ की नहीं, बल्कि सरकार की संपत्ति बन गई।
अदालत का हस्तक्षेप और वनतारा का विकल्प
जब मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचा, तो अदालत ने उसकी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को प्राथमिकता दी। मठ उसे अपने पास ही रखना चाहता था, लेकिन उसकी बिगड़ती हालत को देखते हुए, अदालत ने उसे विशेष इलाज और बेहतर माहौल के लिए एक पुनर्वास केंद्र में भेजने का आदेश दिया।
आज माधुरी वनतारा में है। वहाँ उसे बिना ज़ंजीरों के आज़ादी से घूमने, दूसरे हाथियों के साथ रहने और प्रकृति की गोद में जीने का मौका मिल रहा है। उसके गठिया पर हाइड्रोथेरेपी जैसे विश्व स्तरीय इलाज चल रहे हैं।
प्यार बनाम कल्याण
यह लड़ाई जटिल है। एक तरफ कोल्हापुरवासियों का उस पर निस्वार्थ प्रेम है, जो किसी भी कीमत पर उसे वापस चाहते हैं। तो दूसरी तरफ, उसके 33 साल के दर्दनाक सफर की कहानी है, जहाँ उसका स्वास्थ्य और आज़ादी दाँव पर लगे थे।
माधुरी का असली घर कौन-सा है? इंसानों के प्यार का शोर या प्रकृति की गोद में एक आज़ाद और स्वस्थ जीवन?